DR. SARVESH GUPTA

डर नहीं, जागरूकता – राष्ट्रीय कैंसर दिवस 2025 पर – डॉ. सर्वेश गुप्ता


नमस्ते, मैं डॉ. सर्वेश गुप्ता,

आज, 7 नवंबर को, हम सब राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मना रहे हैं। यह सिर्फ एक कैलेंडर दिवस नहीं है; यह लाखों उन जिंदगियों को समर्पित एक दिन है, जो कैंसर से जूझ रही हैं, या जो इस जंग को जीत चुकी हैं। एक ऑन्कोलॉजिस्ट (सर्जन) के रूप में, मैं हर दिन डर और आशा दोनों देखता हूँ। डर, उस चुप्पी का जो देर से निदान कराती है, और आशा, उस विज्ञान और साहस की जो जीवन को वापस लाती है।

मेरा मानना है कि कैंसर से लड़ने का पहला कदम उपचार नहीं, बल्कि ज्ञान है। जब तक हम सटीक आँकड़ों, लक्षणों और प्रारंभिक जांच के महत्व को नहीं समझेंगे, तब तक यह लड़ाई अधूरी है।

प्रयागराज और भारत की वर्तमान वास्तविकता – क्या हम जागरूक हैं?

कैंसर अब एक दूर की बीमारी नहीं है; यह एक वास्तविकता है। भारत में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, और इनमें सबसे गंभीर बात यह है कि हमारे यहाँ निदान अक्सर बहुत देर से होता है।

स्तन कैंसर : महिलाओं का नंबर 1 दुश्मन

जैसा कि मैंने हाल ही में कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल (KNMH) में आयोजित सेमिनार में भी ज़ोर दिया था, स्तन कैंसर अब भारत में महिलाओं में सबसे आम कैंसर बन चुका है।

स्तन कैंसर: भारत में निदान की वर्तमान वास्तविकता (डॉ. सर्वेश गुप्ता के अनुसार)
तथ्य वर्तमान वास्तविकता
देरी से निदान भारत में लगभग **70% मामले** तब सामने आते हैं जब कैंसर स्थानीय रूप से आगे बढ़ चुका होता है (स्थानीय रूप से उन्नत या मेटास्टेटिक अवस्था)।
मृत्यु दर जागरूकता और देर से जांच के कारण भारत में स्तन कैंसर से जूझ रही लगभग **हर दो महिलाओं में से एक की मृत्यु** हो जाती है।
मुख्य कारण **लाज-शर्म**, सामाजिक संकोच, और लक्षणों को ‘सामान्य’ मानकर अनदेखा करना।


यह आँकड़ा सिर्फ़ एक संख्या नहीं है। यह दिखाता है कि जागरूकता का अभाव हमारे लिए किसी भी आक्रामक चिकित्सा से बड़ा दुश्मन है।

वास्तविक कहानियाँ – कैंसर से जूझने का मतलब क्या है?

एक चिकित्सक के रूप में, मैं वास्तविक जीवन की कहानियाँ देखता हूँ जो किसी भी आँकड़े से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं:
‘निदान में देरी’ की कहानी: 55 वर्षीय श्रीमती लता (नाम परिवर्तित) मेरे पास आईं जब उन्होंने लगभग 6 महीने पहले स्तन में गांठ महसूस की थी। उन्होंने सोचा, “शायद यह सामान्य है, खुद ही ठीक हो जाएगा,” या फिर “शर्म के कारण किसी को बताया नहीं।” जब वह आईं, तो कैंसर चौथे चरण में था। काश! अगर उन्होंने 6 महीने पहले हिचक छोड़ दी होती…

‘जागरूकता से विजय’ की कहानी: 40 वर्षीय एक स्कूल टीचर ने मेरी पिछले साल की एक जागरूकता पोस्ट देखी। उन्होंने कोई लक्षण महसूस नहीं किया, लेकिन नियमित जाँच की सलाह को याद रखा। रूटीन मैमोग्राफी में बहुत छोटे, शुरुआती चरण के ट्यूमर का पता चला। उनकी सफल ओंकोप्लास्टी सर्जरी हुई और वह आज सामान्य जीवन जी रही हैं।

ये कहानियाँ बताती हैं कि कैंसर का सामना करने का मतलब केवल बीमारी से लड़ना नहीं है; इसका मतलब है सही समय पर सही निर्णय लेने का साहस दिखाना।

जागरूकता का मंत्र – So Consult Early (तो जल्दी परामर्श लें)

हमारे जीवन आशा क्लिनिक और पिंक कैंपेन की पूरी मुहिम इसी एक मंत्र पर आधारित है: ‘So Consult Early’ (तो जल्दी परामर्श लें)।
कैंसर के इलाज में विज्ञान ने अद्भुत प्रगति की है। आज, हमारे पास टारगेटेड थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी, और अत्याधुनिक सर्जरी (जैसे ओंकोप्लास्टी) जैसी तकनीकें हैं। ये तकनीकें तब जादू करती हैं, जब कैंसर को प्रारंभिक चरण (Early Stage) में पकड़ा जाता है।

प्रारंभिक निदान के लाभ –

• सफलता दर: शुरुआती चरण में जीवित रहने की दर 90% से अधिक होती है।
• उपचार विकल्प: उपचार कम आक्रामक होते हैं (उदाहरण के लिए: स्तन हटाने के बजाय स्तन-संरक्षण सर्जरी)।
• बेहतर जीवन गुणवत्ता: मरीज़ जल्दी ठीक होते हैं और उपचार के बाद बेहतर जीवन जीते हैं।

KNMH सेमिनार और भविष्य की दिशा

पिंक अक्टूबर में कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल में हमने जो सेमिनार आयोजित किया, वह प्रयागराज के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह सहयोग दिखाता है कि हम सभी विशेषज्ञ मिलकर इस चुनौती का सामना करने को तैयार हैं।

वहाँ हमने न केवल स्तन कैंसर की गंभीरता पर बात की, बल्कि रेजिडेंट्स और नर्सिंग स्टूडेंट्स के लिए क्लिनिकल ब्रेस्ट एग्ज़ामिनेशन (CBE) वर्कशॉप भी आयोजित की, ताकि अगली पीढ़ी के स्वास्थ्यकर्मी भी प्रारंभिक जांच के महत्व को समझें।

ABSI (एसोसिएशन ऑफ ब्रेस्ट सर्जन्स ऑफ इंडिया) के सदस्य के रूप में, मेरा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रयागराज में मरीज़ों को दिल्ली या मुंबई जैसी विशेषज्ञ देखभाल यहीं मिले—जो जीवन आशा क्लिनिक के माध्यम से संभव है।

मानसिक स्वास्थ्य – इलाज का अभिन्न अंग

एक सर्जन के रूप में, मैं जानता हूँ कि इलाज केवल गांठ को हटाना नहीं है। कैंसर का निदान मरीज़ और उसके परिवार को भावनात्मक रूप से तोड़ देता है। यही कारण है कि जीवन आशा क्लिनिक में हम परामर्श (Counselling) और भावनात्मक समर्थन को उपचार का एक अभिन्न अंग मानते हैं।
उपचार केवल शारीरिक नहीं है; यह मानसिक और भावनात्मक भी है। परिवार का समर्थन, दोस्तों की हौसलाअफजाई और विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक सहायता ही मरीज़ को पूरी तरह ठीक होने की शक्ति देती है।

मेरा अंतिम संकल्प – डर को आशा से बदलें

आज, राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर, मैं आप सभी से दो प्रतिज्ञाएँ लेने का आग्रह करता हूँ:

दूसरों के लिए प्रेरणा: अपने परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों को संकोच तोड़ने और समय पर परामर्श लेने के लिए प्रेरित करें।
आपका डर वास्तविक हो सकता है, लेकिन विज्ञान और आशा उससे कहीं अधिक शक्तिशाली हैं।

आइए, हम इस जागरूकता दिवस को केवल याद करके नहीं, बल्कि आज ही कार्रवाई करके मनाएँ। आपकी ज़िंदगी अनमोल है।


डॉ. सर्वेश गुप्ता
कंसल्टेंट सर्जन एवं निदेशक, जीवन आशा क्लिनिक, प्रयागराज।

खुद के लिए जागरूकता – अपनी मासिक स्वयं-जाँच (BSE) को कभी न भूलें और 40 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से विशेषज्ञ से जाँच कराएं।