कैंसर, एक शब्द जो सुनते ही मन में डर और अनिश्चितता का ज्वार उमड़ आता है। यह ना सिर्फ शारीरिक पीड़ा लाता है, बल्कि मानसिक तौर पर भी व्यक्ति को कमजोर कर देता है। ऐसे में, डॉ. सर्वेश गुप्ता, कैंसर सर्जन का कहना है कि मानसिक सहारा कैंसर से लड़ने में एक महत्वपूर्ण हथियार है।
कैंसर के दौर में मानसिक संघर्ष
- डर और अनिश्चितता – बीमारी, इलाज और भविष्य को लेकर डर मन में हमेशा बना रहता है।
- अकेलापन और अलगाव – रोगी अक्सर खुद को समाज से अलग महसूस करते हैं।
- चिंता और अवसाद – इलाज के साइड इफेक्ट्स और बीमारी की चिंता से तनाव और अवसाद बढ़ता है।
- गुस्सा और नकारात्मकता – बीमारी के प्रति नकारात्मक भावनाएं मन को कमजोर बनाती हैं।
मानसिक सहारे के स्त्रोत
- परिवार और दोस्त – प्रियजनों का प्यार और समर्थन सबसे बड़ा सहारा होता है।
- मनोवैज्ञानिक सहायता – मनोवैज्ञानिक तनाव, चिंता और अवसाद से निपटने में मदद करते हैं।
- सहायता समूह – कैंसर से पीड़ित अन्य लोगों से जुड़कर अनुभवों का आदान-प्रदान होता है।
- योग और ध्यान – तनाव कम करने और मानसिक शांति लाने में योग और ध्यान मददगार होते हैं।
- प्रेरणादायक कहानियां – कैंसर से जूझकर जीत हासिल करने वालों की कहानियां प्रेरणा देती हैं।
डॉ. सर्वेश गुप्ता सलाह देते हैं कि कैंसर रोगी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में संकोच न करें। परिवार और दोस्तों से बातें करें, मनोवैज्ञानिक सहायता लें और सकारात्मक रहने का प्रयास करें। नियमित व्यायाम, स्वस्थ आहार और पर्याप्त नींद भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
याद रखें – कैंसर से लड़ाई में आप अकेले नहीं हैं। मानसिक सहारा आपको इस मुश्किल दौर से निकलने और जीवन का आनंद फिर से लेने में मदद करेगा।
डॉ. सर्वेश गुप्ता कैंसर रोगियों को सकारात्मक सोच रखने और आशा न खोने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि मजबूत इरादा और सही इलाज से कैंसर को हराया जा सकता है।
यह लेख आपको कैसा लगा? क्या आप कैंसर से जूझ रहे किसी व्यक्ति को जानते हैं? उनके लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
नोट – यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है। किसी भी चिकित्सा सलाह या उपचार के लिए डॉक्टर से सलाह लें।
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